यूक्रेन में फंसे नागरिकों के बारे में सरकार को उनके परिजनों से सूचनाएं जुटानी पड़ रही हैं। यह बता रहा है कि शासन और प्रशासन के स्तर पर पहले से विदेश जाने वाले नागरिकों के बारे में सूचनाओं के संकलन का कोई तंत्र नहीं है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार यूक्रेन संकट से सबक सीखेगी। जानकारों का मानना है कि यदि सरकार के पास पहले से नागरिकों के बारे डाटा होता तो यूक्रेन संकट में वह बहुत काम आता।वे उम्मीद कर रहे हैं कि शासन और प्रशासन के स्तर पर सूचनाओं का कोई ऐसा तंत्र विकसित होगा, जहां यूक्रेन संकट जैसे हालात में सरकार को नागरिकों की सूचना के लिए उनके परिजनों का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा बल्कि अपने स्तर पर अपडेट सूचनाओं की मदद से युद्धस्तर पर मदद का अभियान शुरू कर दिया जाएगा।मीडिया के इस प्रश्न पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं, सरकार बनेगी तो सूचनाओं का ऐसा तंत्र बनाया जाएगा। प्रश्न यही है कि अब तक ऐसा तंत्र क्यों विकसित नहीं हो पाया। जबकि उत्तराखंड देश के उन चुनिंदा राज्यों में से है, जो अपने भौगोलिक स्वरूप के कारण वर्ष भर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है।ऐसी घटनाओं में डाटा (आंकड़े) प्रणाली सबसे पहली आवश्यकता है। लेकिन यूक्रेन संकट ने सरकारी तंत्र की सोच और दृष्टि की कलई खोलकर रख दी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर पुलिस और प्रशासन को परिजनों से नागरिकों की सूचनाएं जुटानी पड़ रही है। ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ जब किसी संकट से राज्य के नागरिकों को विदेश से लाने की परिस्थितियां बनीं। कोविड 19 महामारी में उत्तराखंड के सैकड़ों नागरिकों को विदेश से वापसी करनी पड़ी और उनके बारे में भी सरकार के पास कोई अपडेट सूचनाएं नहीं थीं।