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Wednesday, July 23, 2025
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अब वो बात कहां : अतीत और वर्तमान के संगीत अनुभव पर “अतुल मलिकराम” का विचार

ब्यूरो, प्रख्यात लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम ने संगीत के बदलते स्वरूप और श्रवण अनुभवों पर अपनी गहरी भावनाएं व्यक्त की हैं। उन्होंने पुराने दौर की संगीत की मिठास को आज के आसान पहुंच वाले संगीत से कहीं बेहतर बताया है।

अतुल मलिकराम के “अतीत और वर्तमान” के संगीत को लेकर विचार-

एक रोज़ मेरा किसी काम से बाहर जाना हुआ, घर लौटते हुए शाम हो गई। मैं घर लौट ही रहा था कि दूर किसी चाय की दुकान पर एक पुराना गाना सुनाई दिया। गाने के बोल मेरे कानों में पड़े, तो एक पल के लिए मैं जवानी के उस समय में पहुँच गया, जब मैं गाने सुनने का बड़ा शौकीन हुआ करता था। लेकिन कुछ ही देर में वापस आज की दुनिया में लौट आया। घर लौटा तो देखा मेरी बिटिया अपने मोबाईल फोन में किसी ऐप पर गाने सुने रही है।

उसे देख कर मेरे मन में ख्याल आया कि एक वो ज़माना था, जब रेडियो और रिकॉर्ड्स पर गाने सुनने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी और एक आज का दौर है, जब केवल एक क्लिक पर ही दुनियाभर का संगीत मौजूद है। इसके बावजूद, जो मिठास उस पुराने दौर में थी, वो आज कहीं नहीं मिलती..

गाने सुनने का यह शौक मुझे शायद विरासत में मिला था। मुझे आज भी याद है बचपन में मेरे दादाजी के पास एक ग्रामोफोन हुआ करता था, जिस पर वे गाने चलाया करते थे। उस समय संगीत सुनना एक रस्म की तरह हुआ करता था। जब भी कोई नया गाना सुनना होता था, तो ग्रामोफोन को बड़ी एहतियात से सेट किया जाता था। काँच का डिस्क निकाला जाता, उसकी सफाई की जाती, और फिर सुई को बड़ी सावधानी से रिकॉर्ड पर रखा जाता।

ग्रामोफोन का वो धीमा घूमना, और सुई का डिस्क पर आकर सुरों को निकालना। बचपन की मासूमियत में यह सब बड़ा ही जादुई लगता था.. उस संगीत में एक अलग ही संतुष्टि थी। वो संगीत महज कानों तक नहीं, बल्कि दिल तक पहुँचता था। हालाँकि, ग्रामोफोन है तो आज भी, लेकिन अब वह घर का सजावटी सामान बन चुका है।

समय बदला तो रेडियों का दौर आया, वह दौर भी बड़ा अनूठा था। मैं और मेरे दोस्त हर शाम फरमाइशी गानों का कार्यक्रम सुनने के लिए झुंड बना कर बैठ जाया करते थे। रेडियो पर बजने वाले गानों के साथ ही कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ताओं की बातचीत, उनकी शेरो-शायरी और गीतों के पीछे की कहानियाँ सब मिलकर संगीत का आनंद कई गुना बढ़ा देती थीं। और कभी हमारा फरमाइशी गीत हमारे नाम के साथ बज गया, तो खुशी सातवें आसमान पर पहुँच जाती थी।

समय बदला तो कैसेट्स और टेप रिकॉर्डर्स आ आए। अब लोग अपने पसंदीदा गानों को रिकॉर्ड कर सकते थे और उन्हें कहीं भी और कभी भी सुन सकते थे। इन कैसेट्स की भी अपनी यादें हैं। अपने पसंदीदा गानों को कैसेट में रिकॉर्ड करवाना, दोस्तों के साथ कैसेट्स का आदान-प्रदान भी अलग ही अनुभव था।

धीरे-धीरे कैसेट्स की जगह सीडी और डीवीडी ने ले ली और फिर पेन ड्राइव आई। इन सभी साधनों में ढेर सारे गाने संभाल कर रखे जा सकते थे। साथ ही, अपने पसंदीदा गाने वीडियो के रूप में देखे भी जा सकते थे।

समय के साथ-साथ दौर बदलता गया और नई-नई तकनीकें आईं, तो गानों को किसी डिवाइस में स्टोर करने की जरुरत भी खत्म हो गई। यूट्यूब और मोबाईल एप जैसे माध्यमों से संगीत सुनना आसान तो हो गया, लेकिन मन-पसंद गानों को सुनने का जो उत्साह था, वो खत्म हो गया। इन तकनीकों ने हमारे लिए संगीत की उपलब्धता तो आसान बना दी, लेकिन इस उपलब्धता में गाने सुनने की वो मिठास कहीं खो गई।

आज हमारे लिए कोई भी गाना केवल एक क्लिक पर उपलब्ध है। आप चाहे जहाँ भी हों, दुनियाभर का हर संगीत आपकी जेब में ही है। लेकिन, पुराने समय का वो रोमांच और संतोष, जो सुई से निकलते सुरों में था, वो अब सिर्फ यादों में ही रह गया..

हालांकि, मलिकराम मानते हैं कि यूट्यूब और मोबाइल ऐप जैसी आधुनिक तकनीकों ने संगीत सुनना तो आसान बना दिया है, लेकिन मनपसंद गानों को सुनने का उत्साह खत्म हो गया है। वे कहते हैं कि इन तकनीकों ने संगीत की उपलब्धता तो आसान बना दी है, लेकिन इस उपलब्धता में गाने सुनने की वो मिठास कहीं खो गई है। उनके अनुसार, आज कोई भी गाना केवल एक क्लिक पर उपलब्ध है, दुनिया भर का हर संगीत हमारी जेब में है, लेकिन पुराने समय का वो रोमांच और संतोष, जो सुई से निकलते सुरों में था, वो अब सिर्फ यादों में ही रह गया है।

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