सरोला समाज के संरक्षण के लिये उठाने होगे महत्पूर्ण कदम विजय थपलियाल
गढ़वाल मंडल में 100 से भी अधिक ब्राह्मण जातियाँ निवास करती हैं। जिसमें सरोला ब्राह्मण के बारे में ऐसा माना जाता है कि सरोला ब्राह्मण 8वीं से 10वीं सदी के मध्य में मैदानी स्थान से उत्तराखंड के गढ़वाली क्षेत्र में आये थे और राजशाही के बेहद करीब थे भोज्य पदार्थ/ पकवान को बनाने के लिये राजशाही द्वारा कुछ ही ब्राह्मणों जातियों को दायित्व दिया गया था उन जातियों को नियमो का पालन करना होता था जिसमें प्रमुख रूप से 12 थान 12 उच्चतम कोटी के ब्राह्मणों को इसका दायित्व दिया गया था यह जातियां आपस में ही रिस्तेदार भी थे और इनके आपस में रिस्ते भी होते थे और होते हैं जो परिवार इत्र ब्राह्मण जातियों से रिस्ते में जुड़े खास कर बेटे का रिसता वह इस परम्परा से धीरे-धीरे बाहर होते गये, बताते चले कि चमोली गोपेश्वर के स्व. अरविंद भट्ट जी के द्वारा प्राप्त पौराणिक अभिलेख के आधार पर आज 119 साल बाद श्रीमान विजय थपलियाल जी के द्वारा इस सदियों पुरानी परम्परा को आने वाली पीढ़ियों के लिये संरक्षित रखने के लिये बिगत सालों से सोशल मीडिया फेसबुक पेज पर सार्थक विचार के साथ जोड़ने के प्रति संकल्पित हुये और फिर whatsapp ग्रुप के माध्यम से आगे बढ़े जिसमें मेंबरों की संख्या में आयी बढ़ोतरी को देखते हुये टेलीग्राम ग्रुप बनाया गया जिसमें आज 238 सरोला परिवार जुड़े है.
इनमे से कोर कमेटी का निर्माण किया गया है। जिसमें अद्यतन तक 10 मेंबरों का चयन किया जा चुका है जो इस प्रकार हैं। विजय थपलियाल, सत्य प्रसाद खंडूरी, राजेन्द्र नौटीयाल, कुलदीप गैरोला, रमेश थपलियाल, सुशील नौटीयाल, भगवती प्रसाद सेमवाल, डॉ सुरेंद्र प्रसाद डीमरी, शैलेन्द्र डिमरी, नरेन्द्र बिजल्वाण को कोर ग्रुप में रखा गया है इस ग्रुप के साथ 24.11.2024 सरोला बिरादरी के संरक्षण के लिये एक बैठक की गई, जिसमें समस्त सरोला बिरादरी में आज की पीडी में रहे परिवारों को एक मंच पर लाने के लिये विचार विमर्श किया गया और आने वाले समय के लिये एक सरोला समाज हितकारी समिति का गठन किया जा सके, जिसका कार्य क्षेत्र आगे सरोला समाज का संरक्षण, पौराणिक परम्पराओं को जीवित रखना, उसके लिये कार्य करना, सर्व समाज को सार्थक राह दिखाना, आदि अनेक बिंदुओं पर कार्ययोजना बनाने पर विचार विमर्श हुवा है, देखने वाली बात होगी कि आने वाले समय में सक्रिय सदस्यों के सहयोग से यह संगठन पौराणिक परम्परा को जीवित बनाएं रखने में कितना सार्थक सिद्ध होता है।