देहरादून: अपराध, न्याय और समाज पर गहन विमर्श के लिए समर्पित ‘क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ (Crime Literature Festival of India) का तीसरा संस्करण शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025 को हयात सेंट्रिक, देहरादून में शुरू हुआ। उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) ने प्रतिष्ठित अतिथियों के साथ इस तीन दिवसीय फेस्टिवल का औपचारिक उद्घाटन किया।
राज्यपाल ने सत्य और शांति पर दिया ज़ोर
उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल जैसे मंच समाज को न्याय, जवाबदेही और सत्य के मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने कहा, “अपराध कई मायनों में हम सभी की कहानी है। यह उत्सव भगवान शिव के त्रिशूल का आशीर्वाद समेटे सत्य और स्पष्टता की ओर हमारा मार्गदर्शन करता है।” उन्होंने पुलिस (Police) और जस्टिस (Justice) जैसे शब्दों में आने वाले ‘आइस’ (Ice) को शांति का प्रतीक बताया, जो समाज में पनप रहे क्रोध और आक्रोश को शांत करने के लिए आवश्यक है।

राज्यपाल ने युवाओं के समक्ष मौजूद चुनौतियों, विशेषकर नशा-उपयोग और साइबर अपराध को आज की सबसे गंभीर समस्याएँ बताया। उन्होंने देहरादून को भारत की साहित्यिक राजधानी बताते हुए गर्व व्यक्त किया कि यह शहर अपराध को समझने और उससे सीख निकालने की चुनौती को स्वीकार करने वाला देश का एकमात्र शहर है।
उद्घाटन दिवस के मुख्य आकर्षण
Crime Literature Festival of India कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि एवं प्रसिद्ध फिल्मकार केतन मेहता, फेस्टिवल चेयरमैन एवं पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार, फेस्टिवल डायरेक्टर एवं पूर्व डीजी उत्तराखंड आलोक लाल, फेस्टिवल सचिव रणधीर के अरोड़ा और डीसीएलएस के मुख्य समन्वयक प्रवीण चंदोक उपस्थित रहे।
फेस्टिवल के चेयरमैन अशोक कुमार ने इसे भारत में अपनी तरह का एकमात्र शैली-आधारित आयोजन बताते हुए कहा कि अगले तीन दिनों में नशा-निरोध, सड़क दुर्घटनाएँ, महिलाओं की सुरक्षा और साइबर अपराध जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी।
उद्घाटन दिवस के सबसे चर्चित सत्रों में से एक “मिर्च मसाला टू मांझी: केतन मेहता’स लेंस ऑन इनजस्टिस” रहा। फिल्मकार केतन मेहता ने पूर्व डीजी आलोक लाल के साथ संवाद में कहा कि अपराध हमेशा से उनके लिए सबसे आकर्षक विधाओं में से एक रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी फिल्में, जैसे ‘मिर्च मसाला’ और ‘मंगल पांडे’, अपराध और मानवीय संघर्ष के अलग-अलग आयामों को तलाशती हैं, क्योंकि मनुष्य मूल रूप से आंतरिक संघर्षों से भरा हुआ प्राणी है।

👮 पुलिसिंग और अपराध पर गहन सत्र
फेस्टिवल डायरेक्टर आलोक लाल ने इस उत्सव को दुनिया का एकमात्र ऐसा आयोजन बताया जो विशेष रूप से अपराध विधा को समर्पित है। उन्होंने कहा कि यह मंच न केवल वास्तविक अपराधों, बल्कि काल्पनिक अपराधों की भी पड़ताल करता है।
शाम का दूसरा सत्र “द एनफोर्सर – एन आईपीएस ऑफिसर’स वॉर ऑन क्राइम इन इंडिया’स बैडलैंड्स” रहा। इसमें पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश प्रशांत कुमार और पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार ने लेखक अनुरुध्य मित्रा के साथ मिलकर भारत के अपराध परिदृश्य की जमीनी चुनौतियों और अनुभवों को साझा किया।




