हवन और यज्ञ पौराणिक काल से हिंदू संस्कृति का हिस्सा रहे हैं जिनका वर्णन हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। हवन में स्वाहा बोलने का भी विधान है। ऐसा कहा जाता है कि जब तक आहुत देते समय स्वाहा न बोला जाए तब तक देवी-देवता उस हवन सामग्री को स्वीकार नहीं करते। इसके पीछे कुछ धार्मिक कारण भी मिलते हैं। चलिए जानते हैं उनके विषय में।
हिंदू धर्म में हवन को विशेष महत्व दिया गया है। गृह प्रवेश, धार्मिक कार्य या फिर किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले हवन जरूरी रूप से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हवन करवाने से उस कार्य में व्यक्ति को देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्व रखता है, बल्कि इससे वातावरण भी शुद्ध होता है। हवन के दौरान आहुति देते समय स्वाहा जरूर बोला जाता है, जिसका एक बहुत ही खास महत्व है। चलिए जानते हैं इस शब्द का अर्थ और महत्व।
स्वाहा का अर्थ
जब हवन किया जाता है, तो यज्ञ के दौरान हवन कुंड में हवन की सामग्री अर्पित करते समय स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है, जिसका अर्थ है सही रीति से पहुंचाना। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अग्निदेव की पत्नी का नाम स्वाहा था, जो दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इसलिए हवन कुंड में आहुति देते समय हर मंत्र के उच्चारण के बाद स्वाहा कहा जाता है और यह माना जाता है कि इससे अग्नि देव प्रसन्न होते हैं।
स्वाहा शब्द का क्या महत्व है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हवन सामग्री का भोग अग्नि के जरिए देवताओं तक पहुंचाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब तक देवी-देवता हविष्य यानी हवन सामग्री को ग्रहण न कर लें, हवन या यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जाता। जब हविष्य को अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पित किया जाता है, तभी देवी-देवता इसे ग्रहण करते हैं।
यह भी है मान्यता
पुराणों में वर्णन मिलता है कि ऋग्वेद काल में अग्नि को देवता और मनुष्य के बीच के माध्यम के रूप में चुना गया था। इसलिए यह माना जाता है कि हवन के दौरान जो भी सामग्री स्वाहा के उच्चारण के साथ अग्नि देव को अर्पित की जाती है वह सीधे देवताओं तक पहुंचती है और जिस भी मंशा से वह हवन किया जा रहा है, वह पूर्ण होती है।