HomeDehradunकब तक लुटती रहेगी महिला अस्मिता? : गरिमा दसौनी

कब तक लुटती रहेगी महिला अस्मिता? : गरिमा दसौनी

देहरादून। आईएसबीटी देहरादून में 13 अगस्त को हुई क्रूरता, नाबालिग किशोरी के साथ पांच लोगों के द्वारा गैंग रेप झकझोर देने वाली घटना है, यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी का। दसौनी ने कहा की कोलकाता, बिहार, उत्तराखंड और यूपी में महिलाओं के साथ हुई क्रूरताओं ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस समय देश भर की महिलाएं दुख और गुस्से में हैं। गरिमा ने कहा ये घटनाएं व्यथित और विचलित करने वाली हैं।

जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं तो देश की महिलाएं देखती हैं कि सरकारें क्या कर रही हैं? उनकी बातों और उपायों में कितनी गंभीरता है? जहां भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सख्त संदेश देने की जरूरत हुई, वहां आरोपियों को बचाने की कोशिशें की जाती है। गरिमा ने कहा कि कितनी विडंबना की बात है की महिला अपराध में संलिप्त आरोपियों को या तो बढ़ाने की कोशिश की जाती है या इन विभत्स घटनाओं को दबाने की कोशिश की जाती है,

यदि ऐसा ना हुआ होता तो तेरा अगस्त को हुई घटना का आज 18 अगस्त को खुलासा होना हमारे सभ्य समाज का आईना है। दसोनी ने कहा कि अभी प्रदेश उधम सिंह नगर के रुद्रपुर में हुई महीला नर्स के साथ बलात्कार और हत्या के जख्म से उबर भी नहीं पाया था की आईएसबीटी में हुए दुष्कर्म ने रोंगटे खड़े कर दिए हैं। महिलाओं पर जघन्य अत्याचार के मामलों में बार-बार नरमी बरतना, विकृत मानसिकता के आरोपी को राजनीतिक संरक्षण देना और सजायाफ्ता कैदियों को जमानत/पैरोल देने जैसी हरकतें महिलाओं को हतोत्साहित करती हैं।

गरिमा ने कहा की इससे देश की महिलाओं का मनोबल टूटता है, ऐसे अपराधियों की कोई माफी नहीं होनी चाहिए और उन्हें इतनी सख्त सजा देनी चाहिए जिससे भविष्य में ऐसा करने की सोचने पर भी इंसान की रूह कांप जाए । गरिमा ने कहा की देश में जब सरकारी आंकड़ों में हर दिन 86 रेप हो रहे हों, महिलाएं सुरक्षा की आशा किससे करें? गरिमा ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की महिला नेत्रियों का आह्वाहन करते हुए कहा कि अंकिता भंडारी हत्याकांड की तरह इस वक्त भी यदि चुप्पी साधी तो घर में अपनी बच्चियों का सामना कैसे करेंगी?

दसौनी ने कहा कि ऐसे में सिर्फ वह पंक्तियां याद आती हैं, सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं वे क्या लाज बचाएंगे सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे, किसको क्या समझाएंगे? सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे।

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