Homeधर्मपुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु को इन भोग से करें प्रसन्न

पुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु को इन भोग से करें प्रसन्न

सनातन धर्म में पुत्रदा एकादशी व्रत का बेहद खास महत्व है। सावन में पुत्रदा एकादशी व्रत किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से पुत्रदा एकादशी व्रत करने से साधक के घर में नन्हे मेहमान का आगमन होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। एकादशी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने के बाद उन्हें प्रिय चीजों का भोग जरूर लगाएं। धार्मिक मत है कि भोग लगाने से श्री हरि प्रसन्न होते हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि पुत्रदा एकादशी के भोग में किन चीजों को शामिल करना चाहिए?

पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त (Sawan Putrada Ekadashi Shubh Muhurat 2024)

पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, एकादशी तिथि का समापन 16 अगस्त को सुबह 09 बजकर 39 मिनट पर होगा। पंचांग को देखते हुए 16 अगस्त को श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इसके साथ ही इसका पारण 17 अगस्त को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 05 मिनट के बीच किया जाएगा।

भगवान विष्णु के प्रिय भोग (Bhagwan Vishnu Ke Priya Bhog)

जगत के पालनहार भगवन विष्णु को पीला रंग प्रिय है। ऐसे में आप पुत्रदा एकादशी के दिन प्रभु को केले का भोग लगाएं। मान्यता है कि भोग में केले को शामिल करने से जातक को धन से संबंधित समस्या से मुक्ति मिलती है और कुंडली में उत्पन्न गुरु दोष खत्म होता है।

माना जाता है कि बिना पंचामृत के भगवान विष्णु का भोग अधूरा रहता है। इसलिए पुत्रदा एकादशी के दिन प्रभु को पंचामृत अर्पित करें। इसमें तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें। बिना तुलसी दल के भगवान भोग स्वीकार नहीं करते हैं। एकादशी से एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़ कर रख लें, क्योंकि एकादशी के दिन तुसली के पत्ते तोड़ने की मनाही है।

इसके अलावा पुत्रदा एकादशी पर भगवन विष्णु को काले तिल के लड्डू अर्पित करें। ऐसी मान्यता है कि भोग में तिल के लड्डू शामिल करने से जीवन की नकारात्मकता दूर होती है और साधक के जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

भोग मंत्र (Bhog Mantra)

पुत्रदा एकादशी पर भगवानविष्णु को भोग लगाते समय निम्न मंत्र का जप करें। मान्यता है कि इस मंत्र के जप के द्वारा प्रभु भोग को स्वीकार करते हैं।

त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।

गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।

इस मंत्र का अर्थ यह है कि हे भगवान जो भी मेरे पास है। वो आपका ही दिया हुआ है। जो आपको ही समर्पित कर रहे हैं। कृपा करके मेरे इस भोग को आप स्वीकार करें।

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