Homeधर्मभगवान कार्तिकेय को समर्पित है स्कंद षष्ठी

भगवान कार्तिकेय को समर्पित है स्कंद षष्ठी

प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का व्रत किया जाता है। इस तिथि पर मुख्य रूप से भगवान स्कंद अर्थात भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि स्कंद षष्ठी की पूजा से ग्रह दोष शांत हो सकते हैं। ऐसे में आइए पढ़ते हैं स्कंद षष्ठी की पूजा विधि।

स्कंद षष्ठी का शुभ मुहूर्त (Skanda Sashti Shubh Muhurat)

सावन माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 10 अगस्त को प्रातः 03 बजकर 14 मिनट पर होगी। जिसका समापन 11 अगस्त को प्रात 05 बजकर 44 मिनट पर ही होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 10 अगस्त 2024, शनिवार को स्कंद षष्ठी मनाई जाएगी।

स्कंद षष्ठी का महत्व (Skanda Sashti Importance)

स्कंद षष्ठी मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र यानी भगवान कार्तिकेय को समर्पित एक पर्व है। भगवान कार्तिकेय को देवताओं के सेनापति भी कहा जाता है। स्कंद षष्ठी का पर्व मुख्य रूप से तमिल हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि स्कंद षष्ठी पर भगवान कार्तिकेय या स्ंकद की पूजा-अर्चना से जीवन की बड़ी-से-बड़ी बाधा दूर हो सकती है। साथ ही साधक को सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है।

स्कंद षष्ठी पूजा विधि (Skanda Sashti Puja Vidhi)

स्कंद षष्ठी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होने के बाद स्कंद भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पूजा घर में भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।

पूजा के दौरान भगवान कार्तिकेय को पुष्प, चंदन, धूप, दीप नैवेद्य आदि अर्पित करें। साथ ही भगवान को फल, मिठाई का भोग लगाएं। आप भगवान कार्तिकेय को मोर पंख भी अर्पित कर सकते हैं, क्योंकि मोर पंख उन्हें प्रिय माना गया है। इससे आपको स्कंद देवता की विशेष कृपा की प्राप्ति हो सकती है।

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