देहरादून, एक समय था जब देहरादून की सुबह कौवों की कर्कश आवाज से शुरू होती थी। ये पक्षी न केवल शहर के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग थे, बल्कि मानव बस्तियों के आसपास के वातावरण को साफ रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में, इनकी संख्या में आई भारी गिरावट ने पर्यावरणविदों और आम नागरिकों, दोनों को चिंतित कर दिया है। शहर के कई हिस्सों में अब कौवों को खोजना मुश्किल हो गया है।
क्या हैं इस गिरावट के मुख्य कारण?
विशेषज्ञों का मानना है कि कौवों की आबादी में इस नाटकीय कमी के कई कारण हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं:
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शहरीकरण और आवास का विनाश: देहरादून का तेजी से हो रहा विस्तार, नए आवासीय और व्यावसायिक निर्माण के लिए पेड़ों और हरे-भरे स्थानों की कटाई का कारण बन रहा है। ये स्थान कौवों के घोंसले बनाने और रहने के लिए आवश्यक थे। कंक्रीट और कांच के जंगल में इनके लिए कोई जगह नहीं बची है।
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बदलते खान-पान और स्वच्छता: कौवे स्वाभाविक रूप से सफाईकर्मी होते हैं। वे खुले में पड़े कचरे और खाद्य अपशिष्ट पर निर्भर रहते थे। शहर में बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन और साफ-सफाई के प्रयासों ने उनके लिए भोजन के इन स्रोतों को सीमित कर दिया है।
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प्रदूषण और कीटनाशक: वायु और जल प्रदूषण के साथ-साथ कृषि और बागानों में कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग कौवों के भोजन श्रृंखला में जहर घोल रहा है, जिससे वे बीमार पड़ रहे हैं या मर रहे हैं।
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बर्ड फ्लू का प्रकोप: समय-समय पर एवियन इन्फ्लूएंजा (बर्ड फ्लू) के प्रकोप ने भी कौवों की आबादी पर गंभीर प्रभाव डाला है। जनवरी 2021 में, दून में बड़ी संख्या में कौवों की मौत के मामले सामने आए थे, जिनकी वजह H5N8 बर्ड फ्लू स्ट्रेन को माना गया था। इस तरह के प्रकोप अचानक इनकी संख्या में बड़ी गिरावट का कारण बनते हैं।
पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी
कौवों का घटता साम्राज्य केवल एक पक्षी प्रजाति का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारे शहरी पर्यावरण के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। ये पक्षी जैविक अपशिष्ट को खत्म करके पर्यावरण को साफ रखने में मदद करते थे। इनकी अनुपस्थिति से शहरी पारिस्थितिकी संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। यह समय है कि हम शहरी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक संतुलन स्थापित करें ताकि हमारी प्राकृतिक विरासत को बचाया जा सके।
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