गुवाहाटी हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 42 साल की शेफाली दास पिछले माह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) के सामने अपनी नागरिकता का दावा साबित करने में कामयाब रहीं, जिस अधिकार पर साल 2017 में प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया था| अब वे फिर से एक भारतीय नागरिक हैं|असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स में जिन लोगों की नागरकिता को लेकर मामले चल रहे हैं उन्हें शहरियत साबित करने के लिए पहली जनवरी 1966 से पहले के भारत में रहने से संबंधित दस्तावेज जमा करवाने पड़ते हैं|हालांकि 15 अगस्त, 1985, को भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच जो असम समझौता हुआ था उसमें विदेशियों का पता लगाने और निर्वासित करने की कट-ऑफ़ तारीख़ 25 मार्च, 1971 तय की गई थी| लेकिन अब असम समझौते का क्लॉज 6 लागू कर दिया गया है जिसके बाद भारतीय नागरिकता के लिए पहली जनवरी 1966 या उससे पहले के क़ागज़ दिखाने पड़ते हैं|वे कहती हैं, “साल 2017 में जब पुलिस पहली बार हमारे घर आई थी तो मैं और मेरे पति घर नहीं थे| पुलिस ने मेरे छोटे बेटे को डरा धमकाकर क़ागज़ थमाने की कोशिश की लेकिन उसने मना कर दिया|थोड़ी देर बाद तब वो (मेरा बेटा) अमराघाट गया तो पुलिस ने उसे वहां पकड़ लिया और कागज़ पकड़ा दिया|”नोटिस पढ़कर जब हमें पता चला कि हमें विदेशी, बांग्लादेशी क़रार दे दिया गया है तो ये सुनकर मेरा शरीर कांपने लगा, मैं सोचने लगी कि अगर मैं जेल चली गई तो मेरे बेटों और नन्ही सी बेटी को कौन संभालेगा? उस दिन घर पर किसी ने खाना नहीं खाया|”यहीं हमारा जन्म हुआ और यहां पढ़ाई-लिखाई की फिर आज अचानक से हम बांग्लादेशी कैसे बन गए? बार-बार यही सवाल मन में कौंधते रहे|”इस बीच फॉरनर्स ट्राइब्यूनल ने सितंबर 2017 में ‘एकतरफा’ फ़ैसला सुनाते हुए शेफाली को विदेशी नागरिक घोषित कर दिया|एफ़टी ने दो पन्ने के आदेश में लिखा कि शेफाली के मुक़दमे में फ़रवरी से सितंबर (2017) के बीच कुल पांच सुनवाइयां हुईं लेकिन शेफाली दास उसमें ग़ैर-हाज़िर रहीं|अदालत ने इसे घोर लापरवाही का मामला बताया|
ख़ुद को भारतीय साबित करने के लिए लड़नी पड़ी लंबी लड़ाई
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