उत्तराखण्ड लखवाड़-ब्यासी बांध परियोजना के तहत 6 गाँव जलमग्न होंगे,जिनमे एक गांव लोहारी भी शामिल था,गांव को सरकारी मशीनरी ने 48 घण्टे में खाली करने का अल्टीमेटम क्या दिया मानो ग्रामीणों के कलिजे चिरने लगे,लेकिन हुकूमत के आगे सब भावनाएं, अनुभूति धराशाई हो गई। लोगों ने जैसे-तैसे अपना सामान समेटना शुरू किया। जौनसार में ज्यादातर घर लकड़ी के बने होते, लोगो ने सोचा किसी और जगह जाकर घर बनायेगे तो खिड़की,दरवाजे के लिए लकड़ी का इंतेज़ाम कैसे करेंगे तो उन्होंने अपने घरों से लकड़ी लेने के लिए तोड़ना शुरू किया, जिस घर को बनाने में,बसाने में कितनी पीढ़ी ने मेहनत की होगी आज वो मेहनत पल भर में खत्म हो गयी। एक सुंदर रमणीक गाँव देखते ही देखते उजाड़ बन गया है।
गाँव वाले अब खाना बदोश बनकर कुछ दूर एक स्कूल में शरणार्थी बने हैं औऱ इंच दर इंच अपने गांव, खेत खलियान,मकानों को देख रहे हैं। लोगों का रो रोकर बुरा हाल है। आखिर हो भी क्यों ना देखते देखते उनका घर चला गया,कुछ समय में गाँव डूब जायेगा। इस गांव के डूबने के साथ लोगों की एक संस्कृति,एक सभ्यता,एक पहचान भी पानी की आगोश में चली गई है।