कंपनी रेट और मार्केट के रेट मेल नहीं खाने के कारण उत्पादन में कमी आ गई है। उद्यमी बढ़ती महंगाई और घटते उत्पादन का विकल्प तलाशने को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि बीपी-शुगर सहित जीवनरक्षक दवाएं महंगी हो सकती हैं।
हालत ये हैं कि कच्चे माल के दाम बढ़ने और उत्पादन कम होने के बाद अधिकांश कंपनियों को बैंक लोन की किस्तें चुकानी मुश्किल पड़ रही हैं। कच्चा माल महंगा होने का सबसे अधिक असर मध्यम दर्जे की फार्मा कंपनियों पर पड़ा है।
फार्मा कंपनियों के संचालकों का कहना है कि मार्केट से आर्डर मिलने बहुत कम हो गए हैं। क्योंकि पैकेजिंग और कच्चा माल 45 फीसदी महंगा मिल रहा है। वे दवा का दाम बढ़ा नहीं सकते। भाड़ा भी बढ़ गया है, ऐसे में आर्डर कम मिलने पर उत्पादन कम करना मजबूरी बन गई है।
उधर, उत्पादन कम होने से उद्यमियों की परेशानी बढ़ रही है। मुनाफा तो दूर खर्चा निकालने में भी दिक्कतें सामने आ रही है। उद्यमी कच्चे माल के दाम कम होने की उम्मीद लगा रहे हैं। जिससे कारोबार दोबारा पटरी पर आ सके।
कच्चे माल के दाम बढ़ने का सीधा असर फार्मा सेक्टर पर पड़ा है। सीएंडएफ पूर्व के रेटों पर ही माल उठाना चाहता है जो मुमकिन नहीं है।
पुराने रेट पर माल न मिलने पर आर्डर कैंसिल हो रहे हैं। जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। सरकारी टेंडर का दाम पहले ही लॉक है। सरकार टेंडर के दाम तो बढ़ाती नहीं है।
सरकार ने कंपनियों में बनने वाली दवाइयों के जो दस वर्ष पहले एमआरपी फिक्स किए थे, आज भी वही फिक्स हैं। दस वर्ष में कच्चे माल, डीजल, पेट्रोल आदि के कई गुना दाम बढ़ गए हैं
- St Jude’s School Wins The Prestigious 12th Inter School Llewellyn Quiz Competition Hosted By Sherwood College, Nainital
- AFG vs NZ Test 2024: न्यूजीलैंड के खिलाफ एकमात्र टेस्ट से पहले अफगानिस्तान को लगा झटका
- ईस्ट दिल्ली राइडर्स बनी दिल्ली प्रीमियर लीग की पहली चैंपियन
- कैंसर रोगियों के लिए एक नई आशा लेकर आया है, होप सुपर स्पेशियलिटी एवं केंसर हास्पिटल: डॉ एस के मिश्रा
- चमोली पुलिस का मैराथन सत्यापन अभियान जारी